2020 : सुखद-दुखद और आश्चर्यजनक रहा
आयुक्तों ने शुरू की बैठक छोड़ भागने की प्रथा, उपजे सवाल का समाधानकारक जवाब देने से बचने के लिए अपनाया जा रहा हथकंडा
नागपुर: वर्ष 2020 कई मायनों में दुःखद-सुखद और आश्चर्यजनक भी रहा.
दुःखद इसलिए कि वर्ष के शुरुआत से कोरोना ने अपने हाथ-पांव फैलाना शुरू कर दिया जो आज भी कायम हैं,जिसका डर आज भी आम नागरिकों सह प्रशासन के मध्य कायम हैं.मानो कोरोना ने जिंदगानी की बढ़ते कदम को कुछ पल के लिए रोक दिया।कई व्यवसाय समाप्त हो गई तो अनेकों बेरोजगार हो गए.मुंढे और राधाकृष्णन बी राजनैतिक दबाव में काम करते देखे गए,ऐसे में उपजे ज्वलंत सवालों का सक्षमता से जवाब देने के बजाय सभा/बैठक छोड़ भागना को तरजीह दी गई.इस नई प्रथा ने सभी को अस्वस्थ्य कर दिया।
सुखद इसलिए कि इस कोरोना के वजह से एक संयुक्त परिवार की संकल्पना जो धीरे-धीरे मिटते जा रही थी,उसे इसी कोरोना की वजह से वापिस पटरी पर लाई जा सकी.इस कोरोना काल में अपने परिजनों के सुख-दुःख का पता चला.परिजनों के साथ चारों वक़्त का भोजन-अल्पोआहार का आनंद लिया गया,खासकर सभी खाद्य पदार्थ घर में तैयार किये गए.कामकाजी नागरिकों और बच्चों में बाहरी खानपान का चलन काफी घर कर चूका था,जिस पर फ़िलहाल लगाम लग चूका हैं.परिवार के सभी सदस्य एक साथ घर में उपलब्ध मनोरंजन का आनंद लेते देखे गए.घर में ही समय-समय पर नए पकवानों तैयार करने संबंधी सफल प्रयोग भी हुए.
आश्चर्य इसलिए कि इस कोरोना काल में अपनी जिम्मेदारी नियमानुसार पूर्ण करने के बजाय राजनैतिक छत्र-छाया में विकास कार्यों को नाना प्रकार के बहाने बनाकर रोका गया और जब जनप्रतिनिधि झल्ला गये,उन्होंने सवाल-जवाब के लिए आमसभा-समिति की बैठक में जवाबदेह आला अधिकारी याने मनपा आयुक्त से सक्षमता से सवाल किये तो समाधानकारक जवाब देने के बजाय सभा/बैठक छोड़ भागने की प्रथा मनपायुक्तों ने शुरू की,इनमें प्रमुखता से तुकाराम मुंढे और राधाकृष्णन बी अग्रणी हैं.
मुंढे और राधाकृष्णन बी में रत्तीभर का अंतर
तत्कालीन मनपायुक्त तुकाराम मुंढे और वर्त्तमान मनपायुक्त राधाकृष्णन बी में सिर्फ इतना ही अंतर हैं कि मुंढे प्रतिक्रिया देते थे और जवाबी हमला भी करने से नहीं घबराते थे,वही दूसरी ओर राधाकृष्णन बी ऐसा कुछ नहीं करते लेकिन दोनों को नागपुर भेजने का मिशन राज्य सरकार का एक ही था और दोनों पूरा भी कर रहे.मनपा में सत्ताधारी भाजपा को परेशान किया जाये,जिसमें दोनों ही आयुक्त शत-प्रतिशत सफल रहे.इस चक्कर में राज्य में MVA के प्रमुख पक्षों के नगरसेवक वर्ग भी बुरी तरह प्रभावित हुए.
दोनों ही आयुक्तों को मनपा में हो रहे व्यर्थ खर्च,भ्रष्टचार रोकने हेतु ठोस व कड़क उपाययोजना जैसे मामलों के लिए गंभीरता दिखाने में पूर्णतः असफल दिखें।जैसे सीमेंट-सड़क फेज-2 के टेंडर शर्त पूरी न करने के बावजूद वर्कऑर्डर दिए गए और समय-समय पर रनिंग बिल भी करोड़ों में दिए गए,इस मामले का सबूत देने के बावजूद निष्क्रिय-विवादास्पद अधिकारियों की जाँच समिति बनाकर लीपापोती की जा रही या फिर लीपापोती के लिए समय दिया जा रहा.मुंढे तो ऐसे मामलों में ठोस कदम के बजाय खुद की पब्लिसिटी पर ज्यादा जोर देते थे.वे जहाँ से कोट सिलवा रहे थे,शाम को उसी के यहाँ कोरोना के नाम पर रेड मार दिए,जब उनके सिपाही ने जानकारी दी तो जुर्माना नहीं ठोका गया.दोनों ही अधिकारी अपने-अपने कार्यकाल में मनपा की कड़की का रोना आजतक रो रहे लेकिन इस कड़की को दूर करने का ठोस उपाय करने में विफल रहे.वर्तमान आयुक्त तो अपने सरकारी बंगले में क्या कमी है,उसे पूर्ण करने में मनपा खजाने का उपयोग करने में संकोच नहीं ,लेकिन नगरसेवकों ने कोई महत्वपूर्ण काम बताया तो कड़की बतलाकर उन्हें भगा दे रहे.
मनपायुक्तों के पीडब्लूडी द्वारा आवंटित बंगले ने पिछले 2 दशक में रिनोवेशन के नाम पर कितने करोड़ रूपए डकार गए,इसका अंकेक्षण किया गया और इस व्यर्थ खर्च का बचत हुआ होता तो औसतन आयुक्तों के मासिक वेतन खर्च निकल गया होता।
मनपा में बाहरी व वार्ड अधिकारी हावी रहे
मनपा में बाहरी अधिकारी 3 दर्जन के आसपास हैं और मनपायुक्त से लेकर वार्ड अधिकारी सह विभाग प्रमुख पदों पर तैनात हैं.इनके काम करने का तरीका,शहर से लगाव और शहर की जानकारी में अपनापन की कमी देखी गई.इसके साथ ही जिनकी नियुक्ति ही वार्ड अधिकारी पद के लिए हुई और उन्हें सेवानिवृत्त भी इसी पद पर होना था,इनका सम्पूर्ण कार्यकाल जोन प्रमुख पद पर कायम रहना था.इनकी प्रभावी एकता और अपने उद्देश्यों के लिए किये गए समझौते के कारण मनपा में इन सभी तूती बोल रही.नतीजा मनपा का एक भी मूल अधिकारी पूर्णकालीन बड़े प्रभावी पद पर नहीं हैं.इसलिए मनपा के मूल कर्मी धीरे-धीरे VRS लेकर घर बैठते जा रहे.
जी का जंजाल बने AG और BVG
KANAK जो हर प्रकार से कचरा संकलन कर रहा था,फटकार भी सहता था,पदाधिकारियों-नगरसेवकों को भी संभालता था,उनके-उनके नुमाइंदे को भी नौकरी पर रख उन्हें समाधानकारक वेतन दे रहा था.इनका कार्यकाल ख़त्म होने के पूर्व इनसे नाखुश पदाधिकारी-नगरसेवकों ने इनसे ज्यादा प्रति टन रकम देकर अपने स्वार्थ के लिए 5-5 जोन संभालने के लिए AG-BVG को लाया।दोनों कंपनी ने कर्मचारी भर्ती के नाम पर जमकर दोहन की.फिर अल्प मशीनों के साथ सेवाएं देनी शुरू की,आजतक अपनी आय बढ़ाने के लिए कचरे के नाम पर ठोस मलवा,मिटटी आदि ढो रही.गत दोनों AG-BVG ने मनपा में उन्हें लांच करने वाले आका को ही आँख-भौ दिखाना शुर कर उनका तय दाना-पानी बंद कर दिया।फिर AG ने 148 कर्मी को निकाल दिया,आयुक्त ने उन्हें पुनः रखने का निर्देश दिया तो उन्होंने साफ़ -साफ़ कह दिया कि हमारी SD वापिस कर दो,हम काम छोड़ने को तैयार हैं,आयुक्त सकपका गए.तो दूसरी ओर BVG ने DOOR 2 DOOR कचरा उठाने के लिए नागपुर मनपा में शामिल किये TATA S को नागपुर RTO -49 से NOC लेकर जयपुर भेज दिया। अर्थात टेंडर शर्तों को पूरी करने के बजाय AG-BVG शेष धंधे में लीन हैं और सभी मौन धारण किये हुए उनका मनोबल ऊँचा कर रहे.
MVA की नित का असर मनपा चुनाव में दिखेगा
MVA नागपुर मनपा को आर्थिक तंगी में छोड़ नासुप्र के माध्यम से शहर विकास पर ध्यान केंद्रित करने की योजना बना रही.क्यूंकि मनपा में सत्ताधारी भाजपा पूर्ण बहुमत के साथ सत्ता में हैं.निश्चित ही इसका असर MVA ने संयुक्त मनपा चुनाव लड़ा तो निश्चित ही दिखेगा।या फिर अलग-अलग भी लड़ा तो और भारी पड़ेगा।वार्ड स्तर पर मनपा चुनाव हुआ तो कांग्रेस को 100 और अन्य सहयोगी पक्ष सेना-एनसीपी व अन्य को 50 सीटों पर चुनाव लड़ना पड़ेगा।ऐसा हुआ तो तीनों पक्षों में बगावत होना भी तय हैं नतीजा इसका लाभ भाजपा को होगा।
सरकारी संपत्ति की लूट को संरक्षण दे रहे जिलाधिकारी
जिलाधिकारी रविंद्र ठाकरे जब मनपा में कार्यरत थे तब वे यहाँ भी काफी निष्क्रिय थे,उनके कक्ष में सैकड़ों फाइल जमा हो जाया करते थे,वे कार्यालय में भी कम ही बैठते थे,अकसर वनमति में बैठ मनपा के विशेषों का काम कर दिया करते थे.इसके बाद विधानसभा चुनाव के दौरान जिलाधिकारी बनने की लॉटरी लगी,फिर इन्होने वहां भी गुल खिलाना शुरू किया।पहले अवैध रेती उत्खनन को खुलेआम बढ़ावा देकर सरकारी राजस्व को चुना लगाया फिर उमरेड तहसील अंतर्गत मौजापीटीचुवा के खसरा क्रमांक ६, ८, १२,३१, ३२,३३,३५, ३६,३९,४२,४२, ४४,३८,४३,४५,४८, ४६,६३,४६,४७, ४९,७९,६४,६५, ६६,७४, ८२,८९,९३,८४/१,८४/२,८४/३,८४/४,८७,९४,१०८,११२,११३,१५५,११६,१२१,व १२९ अंतर्गत वर्ग-२ में शामिल भूखंड कीखरीदी-बिक्री में हुई धांधली पर 17 जनवरी 2020 को जिलाधिकारी रविंद्र ठाकरे का NAGPUR TODAY ने ध्यानाकर्षण करवाया गया और उच्च स्तरीय उच्च स्तरीय जाँच करने मांग की गई थी.मामले की गंभीरता को दरकिनार कर 11 माह बाद भी जिलाधिकारी ने ठोस कार्रवाई न करते हुए भूमाफियाओं को आजतक संरक्षण दे रहे.क्या दाल में काला हैं ?
2020 : सुखद-दुखद और आश्चर्यजनक रहा
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