Upsc के प्रिलिम्स पेपर में ट्रांसलेशन की गड़बड़ी, पहले भी उठे हैं सवाल
हालांकि ये बात सही है कि सिविल सर्विसेज एग्जाम के पेपर्स हर साल कुछ अलग तरीके से तैयार करने की कोशिश की जाती है, शायद इसलिए कि प्रतियोगियों की क्षमता का सही मूल्यांकन हो सके. किसी एक पैटर्न के आधार पर तैयारी करके आया प्रतियोगी वहीं रुक जाए.
वैसे इस बार एग्जाम में चिंता दो बातों को लेकर है. पहली बात जिसका जिक्र ऊपर किया गया है, वो प्रिलिम्स के एग्जाम में आए पेपर्स में ट्रांसलेशन में हुई गंभीर गड़बड़ी, ये एक ऐसा अनुवाद है, जिसे देश में ज्यादातर हिंदी जानने वाले भी बता देंगे और उनसे भी ऐसी गड़बड़ी शायद ही हो. और उसके बदलते पैटर्न के कारण विषयों का संतुलित तौर पर पेपर में नहीं आना.किस भाषा में मूल तौर पर सेट होता है पेपर
इस बार इस परीक्षा में एक सवाल Civil Disobedience Movement (सिविल डिसओबिडिएन्स मूवमेंट) के बारे में पूछा गया लेकिन इसका अनुवाद किया गया-असहयोग आंदोलन. जबकि Civil Disobedience Movement का हिन्दी में अनुवाद सविनय अवज्ञा आंदोलन के रूप में होगा. इसे हम सभी आमतौर पर जानते हैं. महात्मा गांधी ने देश में अलग अलग समय पर दो अलग आंदोलन चलाए थे. इसमें एक था असहयोग आंदोलन और दूसरा था सविनय अवज्ञा आंदोलन.
इसमें नमक क़ानून को तोड़कर खुद नमक बनाना, सरकारी सेवाओं, शिक्षा केंद्रों एवं उपाधियों का बहिष्कार करना, महिलाओं द्वारा शराब, अफ़ीम और विदेशी कपड़े की दुकानों पर जाकर धरना देना और सभी तरह की विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार कर उन्हें जला देना था. साथ ही साथ कर की अदायगी रोकना भी. तो आप समझ सकते हैं कि दोनों आंदोलनों में फर्क था. ये दोनों अलग समय पर छेड़े गए थे.ट्रांसलेशन को लेकर यूपीएससी के नियम क्या हैं
वैसे तो ये बात सही है कि सिविल का पेपर कभी एक जैसा नहीं आता. कभी प्रिलिम्स के पेपर में हिस्ट्री के सवाल ज्यादा होते हैं तो कभी राजनीति के. हालांकि होना ये चाहिए कि हर विषय के सवालों को संतुलित रखा जाए लेकिन ऐसा होता नहीं शायद इस वजह से कि हर संघ लोकसेवा आयोग हर साल आईएएस की परीक्षा में अपने पैटर्न को तोड़ता रहता है.
इस बार के पेपर में एग्रीकल्चर से जुड़े प्रश्वों की भरमार थी. साथ ही पर्यावरण और वाइल्ड लाइफ सेंचुरी पर सवाल पूछे गए थे. इस बार इस पेपर से मध्यकालीन इतिहास गायब नजर आया. करेंट अफेयर्स से महज तीन-चार सवाल ही पूछे गए.
पिछले साल राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ (RSS) से जुड़ी एक समिति ने संस्तुति की थी कि संघ लोक सेवा आयोग सिविल सर्विसेज एग्जाम से जुड़े अपने प्रश्न पत्र को पहले हिंदी में तैयार करे और फिर इसका अनुवाद अंग्रेजी और अन्य क्षेत्रीय भाषाओं में कराए. ये कमेटी आरएसएस से जुड़ी शिक्षा बॉडी शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास (Shiksha Sanskriti Utthan Nyas,SSUN) ने गठित की थी. जिसने यूपीएससी एग्जाम को लेकर तमाम सुझाव दिए थे.
इस कमेटी ने ये भी कहा था कि जिस तरह से इन परीक्षाओं में अंग्रेजी से सवालों का अनुवाद होता है, वो अपने सही अर्थ और भाव खो बैठते हैं. ऐसे में जो भी छात्र हिंदी और अन्य भाषाओं का चयन करते हैं, वो उनके साथ अन्याय की तरह हो जाता है.
पिछले कुछ सालों में ( Upsc ) की परीक्षा में इंग्लिश मीडियम के विद्यार्थियों का ज्यादा चयन हो रहा है. अभ्यार्थीयो का कहना है की हर साल हिंदी भाषा में परीक्षा देनेवाले अभ्यार्थियों के साथ ( Upsc ) भेदभाव करता है. कई बार इसको लेकर अभ्यार्थीयो ने ( Upsc ) की कार्यप्रणाली पर सवाल भी उठाएं है. इनका कहना है की इंग्लिश मीडियम के अभ्यार्थियों को ज्यादा महत्व दिया जाता है. सैकड़ो अभ्यार्थियों का कहना है की एक तो इंग्लिश भाषा को राष्ट्र भाषा बना दीजिये या फिर हिंदी अभ्यार्थियों के साथ न्याय कीजिए.
Upsc के प्रिलिम्स पेपर में ट्रांसलेशन की गड़बड़ी, पहले भी उठे हैं सवाल
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