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बेरोजगारी चरम पर: रोजगार की तलाश में Ola, Uber के ड्राइवर घरखर्च भी हुआ मुश्किल

Nagpur Today : Nagpur News

नागपुर– कोरोना संक्रमण के चलते मार्च महीने में लॉकडाउन किया गया था. यह लॉकडाउन इसलिए किया गया था कि उम्मीद जताई जा रही थी, कि कोरोना का संक्रमण रुक जाएगा. लेकिन 4 महीने के बाद संक्रमण तो नही रुका, लेकिन हां कई लोगों के रोजगार जरूर छीन गए. जो पहले बड़ी मुश्किल से अपना घर चला पाते थे, आज वे बेरोजगारी और तंगहाली की ऐसी ज़िन्दगी जी रहे है , जिसकी किसी ने उम्मीद भी नही की होगी. ऐसे ही ओला (Ola) उबेर (Uber) के ड्राइवर , जिन्होंने कुछ वर्ष पहले लोन लेकर महँगी महँगी गाड़िया इन्सटॉलमेंट पर खरीदी थी, आज वे करीब 4 महीनों से बेरोजगार हो चुके है.

अमूमन 13 से 14 हजार रुपए की महिने की इन गाड़ियों की इन्सटॉलमेंट होती है, लेकिन पिछले 4 महीनों से यह ड्राइवर इन्सटॉलमेंट तक नही भर पाए है. इनके लिए घर का खर्च, बच्चों की परवरिश, दवाई, दवाखाना, और माता-पिता के गुजारे के लिए भी पैसे नही है. नागपुर शहर में हजारों की तादाद में ओला (Ola) और उबेर (Uber ) कैब है. लॉकडाउन से पहले रोजाना 15 से 20 सवारिया मिलती थी, जिसमें इन्सटॉलमेंट के साथ ही घर खर्च भी चलता था, लेकिन अब दिन में 2 से 3 सवारियां मिलने के कारण इन्सटॉलमेंट और घर खर्च तो दूर की बात है, इनको पेट्रोल- डीजल भी अपने जेब से डालना पड़ रहा है.

कुछ वर्ष पहले शहर के युवाओं ने यह कंपनिया ओला Ola,उबेर (Uber) आने के बाद सोचा था कि इनके दिन बदलेंगे, और कंपनियों की ओर से भी इन्हें ऐसे सपने दिखाए गए कि इन युवाओं ने कर्ज लेकर, गहने बेचकर, उधार लेकर 10 से 15 लाख रुपए की यह महंगी कारें( Cars) खरीदी. लेकिन इन्हें क्या पता था कि एक दिन ऐसा आएगा कि यह महंगी कारें (Cars) ही इनके लिए मुश्किल पैदा करेगी और इसकी इन्सटॉलमेंट चुकाना भी इनके लिए काफी मुश्किल होगा. पिछले 4 महीनों से सैकड़ों ओला,उबेर ड्राइवरो की 50, 60 हजार रुपए की इन्सटॉलमेंट पेंडिंग है, बैंक की ओर से इन्हें रोजाना फोन किए जा रहे है, लेकिन इनकी स्थिति इतनी गंभीर है कि इनके पास इन्सटॉलमेंट तो दूर की बात है , इनको गुजर बसर करना भी मुश्किल हो गया है.

‘ नागपुर टुडे ‘ ( Nagpur Today) ने कुछ उबेर (Uber ) ओला (Ola) ड्राइवरो से बात की तो उन्होंने जानकारी देते हुए बताया कि अप्रैल महीने से तंगहाली में जी रहे है, गाड़ी की इन्सटॉलमेंट चुकाने के लिए पैसे नही है. पहले रोजाना बुकिंग मिलती थी, लेकिन अब बुकिंग नही मिल पाती है. अपने जेब से पेट्रोल- डीजल डालना पड़ता है. कई दिनों से दूसरा काम देखने की कोशिश कर रहे है , लेकिन हालात इतने खराब है कि दूसरी जगहों पर भी काम नही मिल पा रहा है.

कुछ और ड्राइवरो से बात की गई तो उनकी भी हालत कुछ ऐसी ही है, या तो फिर इससे भी बुरी है. अब यह सोचने की जरूरत है कि बेरोजगारी देश का एक बड़ा मुद्दा है, लॉकडाउन बढ़ाने से हम मरीजों की संख्या तो नही रोक पाए, हां लेकिन जिनके पास रोजगार , काम, जॉब थे, वे भी उनके हाथ से छीन लिए गए.

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