रिहाई के लिए जोर लगा रहे अर्णब हाई कोर्ट से फिर निराश
रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्णब गोस्वामी को बॉम्बे हाई कोर्ट से शनिवार को भी कोई राहत नहीं मिली। तमाम दलीलों को सुनने के बाद न्यायाधीश एसएस शिंदे और एमएस कार्णिक की खंडपीठ ने इस मामले में तुरंत किसी भी प्रकार की राहत देने से इनकार कर दिया। अर्णब को आर्किटेक्ट अन्वय नाइक और उनकी मां की आत्महत्या के मामले में गिरफ़्तार किया गया है।
अदालत ने कहा कि बहस काफी लम्बी हो गई है और शाम के छह बज गए हैं लिहाजा इस मामले में फ़ैसला अगली सुनवाई तक आरक्षित रखा जा रहा है।
दूसरी ओर, पुलिस हिरासत में लिए जाने के मामले में अलीबाग के जिला सत्र न्यायालय ने भी अर्णब को कोई राहत नहीं दी। अदालत ने कहा कि इस मामले की सुनवाई भी अब सोमवार को होगी। पुलिस हिरासत के लिए पुलिस ने निरीक्षण याचिका दायर की थी। जबकि अर्णब की ओर से न्यायिक रिमांड के मजिस्ट्रेट के आदेश को चुनौती दी गयी थी। याचिका की सुनवाई के दौरान अर्णब गोस्वामी और इस मामले में दो अन्य आरोपियों, फिरोज शेख तथा नीतेश सारदा की तरफ से अदालत में दलील दी गयी कि मामले की सुनवाई बॉम्बे हाई कोर्ट में चल रही है, इसलिए फिलहाल कोई फ़ैसला नहीं दिया जाए।
इस मामले में पुलिस ने अपने आवेदन में सत्र अदालत से अनुरोध किया था कि निचली अदालत के आदेश को रद्द किया जाए और तीनों आरोपियों को उसकी हिरासत में भेजा जाए। गोस्वामी को गिरफ़्तारी के बाद अलीबाग थाने ले जाया गया और बाद में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट सुनैना पिंगले के समक्ष पेश किया गया।
मजिस्ट्रेट ने बुधवार देर रात को आदेश जारी करते हुए तीनों को पुलिस हिरासत में भेजने से इनकार कर दिया था और 18 नवंबर तक की न्यायिक हिरासत में भेज दिया था। अलीबाग पुलिस ने गोस्वामी से पूछताछ के लिए 14 दिन की हिरासत की मांग की थी।
गोस्वामी को इस समय एक स्थानीय स्कूल में रखा गया है, जिसे अलीबाग जेल के लिए कोविड-19 केंद्र बनाया गया है। आर्किटेक्ट अन्वय नाइक और उनकी मां कुमोदिनी नाइक ने 2018 में गोस्वामी की कंपनी द्वारा कथित रूप से उनका बकाया भुगतान नहीं किये जाने के कारण आत्महत्या कर ली थी।
बीजेपी पर हमलावर शिव सेना
रिपब्लिक टीवी के संपादक अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी पर उद्धव ठाकरे सरकार में मंत्री तथा शिव सेना के प्रवक्ता अनिल परब ने बुधवार को कहा कि अर्णब की गिरफ्तारी आत्महत्या के एक प्रकरण की वजह से हुई है। उन्होंने कहा कि इसे प्रेस पर अंकुश या आपातकाल कहना इस मामले को दूसरा रूप देने की साज़िश जैसा है। परब ने कहा कि मुंबई से लेकर दिल्ली तक बीजेपी के नेता और मंत्री इस गिरफ्तारी पर बयानबाजी कर रहे हैं लेकिन इस बात को कोई नहीं बता रहा कि अर्णब पर एक महिला का सुहाग उजाड़ने का आरोप है।
शुक्रवार को हुई सुनवाई में अर्णब की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आबाद पोंडा ने जिरह की थी और कहा कि बिना किसी न्यायिक आदेश के पुलिस के पास ख़ुद ही इस केस को खोलने की शक्ति नहीं है। उन्होंने कहा था कि मजिस्ट्रेट ने 2019 में ही पुलिस की ओर से अदालत में जमा की गई रिपोर्ट के आधार पर इस केस में क्लोजर ऑर्डर पास कर दिया था। अर्णब के दूसरे वकील हरीश साल्वे ने अदालत से कहा कि अर्णब के ख़िलाफ़ लगाए गए आरोपों में दम नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट से मिली राहत
हालांकि, अर्णब को शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली थी। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को विशेषाधिकार हनन के मामले में अर्णब की गिरफ़्तारी पर रोक लगा दी थी। इसके साथ ही अदालत ने महाराष्ट्र की विधानसभा के सचिव को अवमानना का नोटिस भी जारी किया था। यह नोटिस अर्णब को विधानसभा की ओर से पत्र भेजे जाने के लिए जारी किया गया है।
इसमें कहा गया है कि अर्णब को कथित रूप से डराने के लिए विधानसभा की ओर से उन्हें पत्र जारी किया गया क्योंकि उन्होंने अदालत का रूख़ किया था। शीर्ष अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि अर्णब को उनके ख़िलाफ़ विधानसभा की ओर से जारी विशेषाधिकार नोटिस के चलते गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिए।
रिहाई के लिए जोर लगा रहे अर्णब हाई कोर्ट से फिर निराश
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