सभी के सहयोग के बिना लीवर ट्रांसप्लांट करना मुश्किल था
पिता ने माना आभार
नागपूर: सहयोग के बिना मेरी 8 वर्षीय बेटी का लीवर ट्रांसप्लांट करना मुश्किल था. सेन्ट जोसफ स्कूल मैनेजमेन्ट, पालक और समाज की मदद के कारण आज मेरी बेटी को नया जीवन मिला है. मै सभी का सदैव ऋणी रहुंगा, ऐसी प्रतिक्रिया पिता व वरिष्ठ रिपोर्टर योगेंद्र शंभरकर ने मिडिया से बातचित के दौरान दी है.
8 वर्षीय बालिका का लीवर खराब होने के बाद डाक्टरों ने ट्रांसप्लांट की सलाह दी. लेकिन इस ट्रांसप्लांट में 30 लाख का खर्च परिजनों के लिए किसी पहाड़ से कम नहीं था. पिता ने सेन्ट जोसफ स्कूल संचालक, पालक, मित्र, परिजनों सहित समाज की मदद लेकर डाक्टरों के पास ऑपरेशन की सहमति दर्शाई. इसके लिए खुद का लीवर दान करने का भी निर्णय लिया. लकड़गंज के न्यू ईरा अस्पताल में बालिका को भर्ती किया गया. 3 सप्ताह पहले बालिका ग्रिमशा की तबीयत खराब होने पर उसे एक निजी अस्पताल में भर्ती किया गया था. विविध जांच के बाद पता चला कि बालिका का लीवर खराब हो गया है. डाक्टरों ने पिता को ट्रांसप्लांट की सलाह दी. लेकिन इतनी बड़ी रकम जमा करना भी चुनौती भरा काम था. सभी स्तर पर मिले सहयोग से निधि का इंतजाम हो गया, उसके बाद न्यू ईरा अस्पताल में लाखों का पॅकेज जमा करने के बाद डॉक्टरों ने सफलता पूर्वक ऑपरेशन किया. खासबात तो यह थी, की ट्रांसप्लांट के लिए काफी कम समय होने से 30 लाख जैसी बड़ी रकम जुटाना पिता के लिए भी बड़ी चुनौती थीं.
दरअसल शरीर में एक लीवर में 2 ‘लोव’ होते हैं जो दाये और बाये हिस्से में होते हैं. इसमें से बालिका को पिता का एक ‘लोव’ दिया गया. ट्रांसप्लांट संबंधी प्रक्रिया के बाद लीवर ऑर्गन ट्रान्सप्लांट समिति ने भी मंजूरी दे दी. इसके बाद डाक्टरों ने सर्जरी की तैयारी की. और पिता का 30 प्रतिशत लीवर का हिस्सा बेटी के लीवर में ट्रान्सप्लांट किया गया. पिता और बेटी अब दोनो पूरी तरह स्वस्थ्य है. डॉक्टरों ने पिता को छुट्टी दे दी है. लेकिन बेटी को देखरेख में रखा है.
पिता योगेन्द्र शंभरकर ने सेन्ट जोसफ स्कूल के संचालक मंडल, पालक, ब्लू विजन फोरम नेटवर्क, एआयएम, बीएआयईए जपान, एएएनए (यूएसए), एआयएम ओमन, एचएमएफ, एफईईएल, ग्रुप मेम्बर्स पुणे, जीईएन ग्रुप मेम्बर्स मुंबई, यूएसए, बीएजीएपी, बीइडीसी, रोटरी क्लब, लायंस क्लब सदस्य, संजीवीनी सखी संघ, कलर्स चिल्ड्रेन अस्पताल, रिश्तेदार और दोस्तों का आभार माना है.
सभी के सहयोग के बिना लीवर ट्रांसप्लांट करना मुश्किल था
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