गोंदिया राइस मिलर्स को है सरकार से , राहत की दरकार
गोंदिया: धान का कटोरा के नाम से प्रसिद्ध गोंदिया जिले में धान का उत्पादन अच्छा होने के कारण जिले में 335 राइस इंडस्ट्री लगी है लेकिन पिछले कुछ वर्षों से चावल उद्योग के सामने नई समस्याएं खड़ी हो गई है , जिससे जिले का चांवल उद्योग आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है। रही सही कसर देशव्यापी लाक डाउन ने पूरी कर दी जिससे जिले के चावल उद्योग को जबरदस्त झटका लगा है। जहां अग्रिम आर्डर के सौदे निरस्त हो गए हैं वही लाकडाउन के कारण करोड़ों रुपए की कार्यशील पूंजी भी अटक गई है।
लाकडाउन दौरान 2610 टन चावल का एक्सपोर्ट
अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारत का गैर बासमती चावल अन्य देशों के चावल के मुकाबले मंहगा है जिसके कारण मांग कम है और चांवल निर्यात पर भी असर पड़ने से व्यापार प्रभावित हुआ है। हालांकि गोंदिया से 45 डिब्बों की रैक (मालगाड़ी ) लाकडाउन के दौरान काकीनाड़ा पोर्ट (आंध्र प्रदेश) हेतु भेजी गई है तथा 2610 टन चावल गोंदिया से एक्सपोर्ट किया गया है।
धान के आवक की रफ्तार थमने से प्रोडक्शन सुस्त
गोंदिया राइस मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक अग्रवाल ने जानकारी देते बताया- हमारी जो मिलें शुरू रहती हैं उसमें मोस्टली सहयोग रॉ- मटेरियल का रहता है पहले छत्तीसगढ़ , बिहार, झारखंड यहां तक हम उत्तरप्रदेश से भी धान खींच लेते थे अभी लाकडाउन की वजह से धान बिल्कुल नहीं आ पा रहा है। 31 मार्च को गोंदिया कलेक्टर के आदेश के बाद 1 अप्रैल से जिले की मिलें शुरू है लेकिन लोकल आसपास के जिलों से जितना धान कलेक्ट कर पा रहे हैं बस उसी 20% धान के भरोसे मिल चला पा रहे हैं। जिले में 335 राइस मिलें हैं जिनमें 270 चालू हालत में है बाकी तो परमानेंटली बंद हो गई है उनमें से मौजूदा स्थिति में जिन्हें धान मिल पा रहा है ऐसी लगभग 200 मिलें एक शिफ्ट में शुरू है।
सवा महीने के लाकडाउन ने 3 महीने पीछे धकेला
मिलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष अशोक अग्रवाल ने कहा -लाकडाउन जरूरी था , हमें क्या-क्या रिलैक्सेशन देना है यह सरकार तय करेगी ।
वर्तमान में एक से सवा महीने के लाकडाऊन ने हमें 3 महीने पीछे धकेल दिया है। हमारे पीछे कुछ फिक्स चार्जेस है जैसे- बैंक लोन की किश्त , बिजली मीटर का फिक्स चार्ज वह तो हमें भरना ही भरना है ? तीसरा है मंथली पेमेंट पर जो मजदूर हैं वह काम पर आएं अथवा ना आएं ? हमें उन्हें वेतन देना है , लेबर डिपार्टमेंट से भी हमें गाइडलाइन मिली है राइस मिलर्स एसोसिएशन की ओर से सभी मिलों को सूचित कर दिया गया है कि किसी का पैसा ना काटा जाए , मिल बंद दौरान का वेतन भी दे रहे है।
राइस उद्योग पर संकट के बादल
लगभग 20 से 25 हजार मजदूरों को रोजगार उपलब्ध कराने वाला रईस उद्योग इन दिनों संकट में है।जिले के मिलर्स को बैंक गारंटी पर शासन द्वारा कस्टम मिलिंग के लिए धान दिया दिया गया है इन मिलर्स को धान के बदले चावल सरकारी गोदामों में जमा करना था लेकिन आर्थिक नुकसान के चलते कुछ मिलर्स गत अनेक वर्षों से चावल जमा नहीं कर पा रहे हैं। कस्टम मिलिंग नियम पर आश्रित कई मिलों के संचालक समय पर बैंक गारंटी आदि शर्ते पूरी न कर पाने की वजह से धान जमा नहीं कर पा रहे हैं , नतीजतन ऐसी कई यूनिट रॉ- मटेरियल के अभाव में बंद पड़ी है।
ज्यादातर मिलर्स बैंकों के कर्ज से लद गए हैं तो कुछ कर्ज में डूबे राइस मिलों पर बैंकों ने रिकवरी की कार्रवाई की है और वहां इन दिनों ताले लटके हुए हैं। कुल मिलाकर अब इस संकट में फंसी राइस इंडस्ट्री को सरकार से आर्थिक राहत की दरकार है।
रवि आर्य
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